पौंश्चल्याच्चलचित्ताच्च नैस्नेह्याच्च स्वभावतः । रक्षिता यत्नतोऽपीह भर्तृष्वेता विकुर्वते ।

सन्तानोत्पत्ति धर्म-कार्य उत्तम सेवा और रति तथा अपना और पितरों का जितना सुख है वह सब स्त्री ही के आधीन होता है ।

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