पानं दुर्जनसंसर्गः पत्या च विरहोऽटनम् । स्वप्नोऽन्यगेहवासश्च नारीसंदूषणानि षट्

हे पुरुषो ! सन्तानोत्पत्ति के लिए महाभाग्योदय करने हारी पूजा के योग्य गृहाश्रम को प्रकाशित करती, सन्तानोत्पत्ति करने-कराने हारी घरों में  स्त्रियाँ है वे श्री अर्थात् लक्ष्मोस्वरूप होती है क्योंकि लक्ष्मी, शोभा, धन और स्त्रियों में कुछ भेद नहीं है ।

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