साक्षी के उस वचन को मानना जो स्वभाव ही से व्यवहारसम्बन्धी बोले और सिखाये हुए, इससे भिन्न जो – जो वचन बोलें उस – उसको न्यायधीश व्यर्थ समझे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
साक्षी के उस वचन को मानना जो स्वभाव ही से व्यवहारसम्बन्धी बोले और सिखाये हुए, इससे भिन्न जो – जो वचन बोलें उस – उसको न्यायधीश व्यर्थ समझे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)