स्वानि कर्माणि कुर्वाणा दूरे सन्तोऽपि मानवाः । प्रिया भवन्ति लोकस्य स्वे स्वे कर्मण्यवस्थिताः ।

अपने – अपने कत्र्तव्यों को करते हुए और अपने – अपने कत्र्तव्य कर्मों में स्थित रहने वाले मनुष्य दूर रहते हुए भी समाज के प्यारे अर्थात् लोक प्रिय होते हैं ।

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