नोत्पादयेत्स्वयं कार्यं राजा नाप्यस्य पुरुषः । न च प्रापितं अन्येन ग्रसेदर्थं कथं चन

राजा अथवा कोई राजपुरूष स्वंय किसी झगड़े को उत्पन्न न करें अर्थात् स्वार्थ, लालच आदि के कारण किसी झगड़े को न पैदा करें, न बढ़ावें और किसी वादी, प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत किये गये मुकद्दमे के वास्तविक न्याय को किसी भी प्रकार अर्थात् स्वार्थ, लालच आदि के कारण न दबावे – उपेक्षा न करे, सही न्याय करे ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *