राज्ञश्च दद्युरुद्धारं इत्येषा वैदिकी श्रुतिः । राज्ञा च सर्वयोधेभ्यो दातव्यं अपृथग्जितम्

परन्तु सेनास्थ जन भी उन जीते हुए पदार्थों में से सोलहवां भाग राजा को देवें और राजा भी सेनास्थ योद्धाओं को उस धन में से जो सब ने मिलकर जीता हो सोलहवां भाग देवे ।

और जो कोई युद्ध में मर गया हो उसकी स्त्री और सन्तान को उसका भाग देवे और उसकी स्त्री तथा असमर्थ लड़कों का यथावत् पालन करें । जब उसके लड़के समर्थ हो जावें तब उनको यथायोग्य अधिकार देवे । जो कोई अपने राज्य की वृद्धि, प्रतिष्ठा, विजय और आनन्दवृद्धि की इच्छा रखता हो, वह इस मर्यादा का उल्लंघन कभी न करे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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