यच्चास्य सुकृतं किं चिदमुत्रार्थं उपार्जितम् । भर्ता तत्सर्वं आदत्ते परावृत्तहतस्य तु ।

और जो उसकी प्रतिष्ठा है जिससे इस लोक और परलोक में सुख होने वाला था उसको उसका स्वामी ले लेता है जो भागा हुआ मारा जाये उसको कुछ भी सुख नहीं होता, उसका पुण्यफल नष्ट हो जाता और उस प्रतिष्ठा को वह प्राप्त हो जिसने धर्म से यथावत् युद्ध किया हो ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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