यस्तु भीतः परावृत्तः संग्रामे हन्यते परैः । भर्तुर्यद्दुष्कृतं किं चित्तत्सर्वं प्रतिपद्यते । ।

और जो पलायन अर्थात् भागे और डरा हुआ भृत्य शत्रुओं से मारा जाये वह उस स्वामी के अपराध को प्राप्त होकर दण्डनीय होवे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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