पात्रस्य हि विशेषेण श्रद्दधानतयैव च । अल्पं वा बहु वा प्रेत्य दानस्य फलं अश्नुते

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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