जब कभी प्रजा का पालन करने वाले राजा को अपने से तुल्य, उत्तम और छोटा संग्राम में आवाह्न करे तो क्षत्रियों के धर्म का स्मरण करके संग्राम में जाने से कभी निवृत्त न हो अर्थात् बड़ी चतुराई के साथ उनसे युद्ध करे, जिससे अपनी ही विजय हो ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)