कामजेषु प्रसक्तो हि व्यसनेषु महीपतिः । वियुज्यतेऽर्थधर्माभ्यां क्रोधजेष्वात्मनैव तु

क्यों कि जो राजा काम से उत्पन्न हुए दश दुष्ट व्यसनों में फंसता है वह अर्थ अर्थात् राज्य – धन – आदि और धर्म से रहित हो जाता है । और जो क्रोध से उत्पन्न हुए आठ बुरे व्यसनों में फंसता है वह शरीर से भी रहित हो जाता है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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