सह वापि व्रजेद्युक्तः संधिं कृत्वा प्रयत्नतः । मित्रं हिरण्यं भूमिं वा संपश्यंस्त्रिविधं फलम् ।

(यदि पूर्वोक्त कथनानुसार (७।२०२-२०३) राजा को बन्दी न बनाकर उसके स्थान पर दूसरा राजा न बिठाकर उसे ही राजा रखे तो) अथवा उसी राजा के साथ मेल करके बड़ी सावधानी पूर्वक उससे सन्धि करके अर्थात् सन्धिपत्र लिखाकर मित्रता, सोना अथवा भूमि की प्राप्ति होना इन तीन प्रकार के फलों को देखकर अर्थात् इनकी उपलब्धि करके वापिस लौट आये ।

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