Adhyay : 7 Mantra : 162 Back to listings संधिं तु द्विविधं विद्याद्राजा विग्रहं एव च । उभे यानासने चैव द्विविधः संश्रयः स्मृतः Leave a comment राजा, संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और संश्रय दो – दो प्रकार के होते हैं, उनको यथावत् जाने । (स० प्र० षष्ठ समु०) Related