संधिं तु द्विविधं विद्याद्राजा विग्रहं एव च । उभे यानासने चैव द्विविधः संश्रयः स्मृतः

राजा, संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और संश्रय दो – दो प्रकार के होते हैं, उनको यथावत् जाने ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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