तं देशकालौ शक्तिं च विद्यां चावेक्ष्य तत्त्वतः । यथार्हतः संप्रणयेन्नरेष्वन्यायवर्तिषु ।

देश, समय, शक्ति और विद्या अर्थात् अपराध के अनुसार उचित दण्ड का ज्ञान, इन बातों को ठीक – ठीक विचार कर अन्याय का आचरण करने वाले लोगों में उस दण्ड को यथायोग्य रूप में प्रयुक्त करे ।

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