तीक्ष्णश्चैव मृदुश्च स्यात्कार्यं वीक्ष्य महीपतिः । तीक्ष्णश्चैव मृदुश्चैव राज भवति सम्मतः ।

जो महीपति कार्य को देखकर तीक्ष्ण और कोमल भी होवे वह दुष्टों पर तीक्ष्ण और श्रेष्ठों पर कोमल रहने से अतिमाननीय होता है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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