‘‘राजा जिनको प्रजा की रक्षा का अधिकार देवे वे धार्मिक, सुपरीक्षित विद्वान्, कुलीन हों । उनके आधीन प्रायः शठ और परपदार्थ हरने वाले चोर – डाकुओं को भी नौकर रख के, उनको दुष्टकर्मों से बचाने के लिए राजा के नौकर कर के, उन्हीं रक्षा करने वाले विद्वानों के स्वाधीन करके उनसे इस प्रजा की रक्षा यथावत् करे ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
क्यों कि प्रायः राजा के द्वारा प्रजा की सुरक्षा के लिये नियुक्त राज सेवक दूसरों के धन के लालची अर्थात् रिश्वतखोर और ठग या धोखा करने वाले हो जाते हैं ऐसे राजपुरूषों से अपनी प्रजाओं की रक्षा करे अर्थात् ऐसे प्रयत्न करे कि वे प्रजाओं के साथ या राज्य के साथ ऐसा बर्ताव न कर पायें ।