स ताननुपरिक्रामेत्सर्वानेव सदा स्वयम् । तेषां वृत्तं परिणयेत्सम्यग्राष्ट्रेषु तच्चरैः । ।

‘‘जो नित्य घूमने वाला सभापति हो उसके अधीन सब गुप्तचर और दूतों को रखे, जो राज पुरूष और भिन्न – भिन्न जाति के रहें, उन से सब राज और प्रजा पुरूषों के सब दोष और गुण गुप्तरीति से जाना करे । जिनका अपराध हो उनको दंड और जिनका गुण हो उनकी प्रतिष्ठा सदा किया करें ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

वह (७।१२० में वर्णित) सचिव – मन्त्री उन निर्मित (७।१२१) सब सचिवालयों का सदा स्वंय घूम – फिरकर निरीक्षण करता रहे और देश में अपने दूतों के द्वारा वहंा नियुक्त राज पुरूषों के आचरण की गुप्तरीति से जानकारी प्राप्त करता रहे ।

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