राष्ट्रस्य संग्रहे नित्यं विधानं इदं आचरेत् । सुसंगृहीतराष्ट्रे हि पार्थिवः सुखं एधते ।

‘इसलिए राजा और राजसभा राजकार्य की सिद्धि के लिए ऐसा प्रयत्न करें कि जिससे राजकार्य यथावत् सिद्ध हों । जो राजा राज्यपालन में सब प्रकार तत्पर रहता है उसको सदा सुख बढ़ता है ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

इसलिए राजा राष्ट्र की रक्षा व्यवस्था एवं अभिवृद्धि के लिए सदैव इस निम्न वर्णित व्यवस्था (११४ – १४४) को लागू करे क्यों कि सुरक्षित एवं समृद्ध तथा व्यवस्थित राष्ट्र वाला राजा ही सुखपूर्वक रहते हुए बढ़ता है – उन्नति करता है ।

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