. जैसे प्राणियों के प्राण शरीरों को कृशित करने से क्षीण हो जातें हैं वैसे ही प्रजाओं को दुर्बल करने से राजाओं के प्राण अर्थात् बलादि बन्धुसहित नष्ट हो जाते हैं ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
. जैसे प्राणियों के प्राण शरीरों को कृशित करने से क्षीण हो जातें हैं वैसे ही प्रजाओं को दुर्बल करने से राजाओं के प्राण अर्थात् बलादि बन्धुसहित नष्ट हो जाते हैं ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)