नित्यं उद्यतदण्डः स्यान्नित्यं विवृतपौरुषः । नित्यं संवृतसंवार्यो नित्यं छिद्रानुसार्यरेः । । ७

. राजा सदैव दंड का प्रयोग करने में तत्पर रहे सदैव पराक्रम दिखलाने के लिए तैयार रहे सदैव गोपनीय कार्यों को गुप्त रखे सदैव शत्रु के छिद्रों – कमियों को खोजता रहे ।

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