बुद्धिवृद्धिकराण्याशु धन्यानि च हितानि च । नित्यं शास्त्राण्यवेक्षेत निगमांश्चैव वैदिकान् ।

हे स्त्रीपुरूषो! तुम जो धर्म – धन और बुद्धयादि को अत्यन्त शीघ्र बढ़ाने हारे हितकारी शास्त्र हैं उनको और वेद के भागों की विद्याओं को नित्य देखा करो ।

(सं० वि० गृहाश्रम वि०)

‘‘जो शीघ्र बुद्धि – धन और हित की बुद्धि करने हारे शास्त्र और वेद हैं उनको नित्य सुनें और सुनावें, ब्रह्मचर्याश्रम में जो पढ़े हों उनको स्त्री पुरूष नित्य विचारा और पढ़ाया करें ।’’

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