श्रुतिस्मृत्युदितं सम्यङ्निबद्धं स्वेषु कर्मसु । धर्ममूलं निषेवेत सदाचारं अतन्द्रितः । ।

सदाचार की प्रशंसा एवं फल –

गृहस्थ सदा आलस्य को छोड़कर वेद और मनुस्मृति में वेदानुकूल कहे हुए अपने कर्मों में निबद्ध धर्म का मूल सदाचार अर्थात् जो सत्य और सत्पुरूष आप्त धर्मात्माओं का आचरण है, उसका सेवन सदा किया करें ।

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