वेदाभ्यासेन सततं शौचेन तपसैव च । अद्रोहेण च भूतानां जातिं स्मरति पौर्विकीम् ।

वेदाभ्यास का कथन और उसका फल

मनुष्य निरन्तर वेद का अभ्यास करने से आत्मिक तथा शारीरिक पवित्रता से तथा तपस्या से और प्राणियों के साथ द्रोहभावना न रखते हुए अर्थात् अहिंसाभावना रखते हुए पूर्वजन्म की अवस्था को स्मरण कर लेता है ।

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