पौर्विकीं संस्मरन्जातिं ब्रह्मैवाभ्यस्यते पुनः । ब्रह्माभ्यासेन चाजस्रं अनन्तं सुखं अश्नुते ।

पूर्वजन्म की अवस्था का स्मरण करते हुए फिर भी यदि वेद के अभ्यास में लगा रहता है तो निरन्तर वेद का अभ्यास करने से मोक्ष – सुख को प्राप्त कर लेता है ।

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