सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यं अप्रियम् । प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः ।

सत्य तथा प्रियभाषण –

सदा प्रिय सत्य दूसरे का हितकारक बोले अप्रिय सत्य अर्थात् काणे को काणा न बोले अनृत झूठ दूसरे को प्रसन्न करने के अर्थ न बोले ।

(स० प्र० चतुर्थ समु०)

यह सनातन धर्म है । (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

‘‘मनुष्य सदैव सत्य बोलें और दूसरे का कल्याणकारक उपदेश करें, काणे को काणा, मूर्ख को मूर्ख आदि अप्रिय वचन उनके सम्मुख कभी न बोलें और जिस मिथ्याभाषण से दूसरा प्रसन्न होता हो उसको भी न बोलें यह सनातन धर्म है ।’’

(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

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