नात्मानं अवमन्येत पुर्वाभिरसमृद्धिभिः । आ मृत्योः श्रियं अन्विच्छेन्नैनां मन्येत दुर्लभाम् ।

आत्महीनता – अनुभव – निषेध –

गृहस्थ द्विज कभी प्रथम पुष्कल धनी होके पश्चात् दरिद्र हो जायें, उससे अपने आत्मा का अपमान न करें कि ‘हाय हम निर्धन हो गये’ इत्यादि विलाप भी न करें, किन्तु मृत्युपर्यन्त लक्ष्मी की उन्नति में पुरूषार्थ किया करें, और लक्ष्मी को दुर्लभ न समझें ।

(सं० वि० गृ० प्र०)

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