कुह्वै चैवानुमत्यै च प्रजापतय एव च । सह द्यावापृथिव्योश्च तथा स्विष्टकृतेऽन्ततः

और अमावस्या की अधिष्ठात्री ईश्वरीय शक्ति अर्थात् कृष्णपक्ष को रचने वाली परमेश्वर की शक्ति के लिए (‘ओं कुह्वै स्वाहा’ मन्त्र से) तथा पूर्णिमा की अधिष्ठात्री ईश्वरीय शक्ति अर्थात् शुक्लपक्ष का निर्माण करने वाली परमेश्वर की शक्ति के लिए या परमेश्वर की चितिशक्ति के लिए (‘ओं अनुमत्यै स्वाहा’ मन्त्र से) सब जगत् को उत्पन्न करने वाले परमेश्वर के सामथ्र्य गुण के लिए (‘ओं प्रजापतये स्वाहा’ मन्त्र से) ईश्वर द्वारा उत्पादित द्युलोक और पृथिवी लोक की पुष्टि के लिए (‘ओं सहद्यावापृथिवीभ्यां स्वाहा’ मन्त्र से) (तथा अन्ततः) और अन्त में अभीष्ट सुख देने वाले ईश्वर गुण के लिए (‘ओं स्विष्टकृते स्वाहा’ मन्त्र से) आहुति देवे ।

इसी श्लोकानुसार सत्यार्थप्रकाश चतुर्थ समु० में निम्न आहुतियाँ कथित हैं –

‘‘कुह्वै स्वाहा । अनुमत्यै स्वाहा । प्रजापतयै स्वाहा । सह द्यावा – पृथिवीभ्यां स्वाहा । स्विष्टकृते स्वाहा । इन प्रत्येक मन्त्रों से एक – एक बार आहुति प्रज्वलित अग्नि में छोड़े ।’’

(स० प्र० चतुर्थ समु०)

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