अग्नेः सोमस्य चैवादौ तयोश्चैव समस्तयोः । विश्वेभ्यश्चैव देवेभ्यो धन्वन्तरय एव च ।

प्रथम अग्नि – पूज्य परमेश्वर और सोम – सब पदार्थों को उत्पन्न और पुष्ट करके सुख देने वाले सोमरूप परमात्मदेव के लिए (‘ओम् अग्नये स्वाहा’ ‘ओं सोमाय स्वाहा’ इन मन्त्रों द्वारा) और उन्हीं देवों के सर्वत्र व्याप्त रूपों के लिए संयुक्त रूप में (‘ओम् अग्नीषोमाभ्यां स्वाहा’ इन मन्त्र के द्वारा, अग्नि – जो प्राण अर्थात् सब प्राणियों के जीवन का हेतु है और सोम – जो अपान अर्थात् दुःख के नाश का हेतु है) और विश्वदेवों – संसार को प्रकाशित या संचालित करने वाले ईश्वरीय गुणों के लिए (‘ओं विश्वेभ्यः देवभ्यः स्वाहा’ इस मन्त्र द्वारा) तथा धन्वन्तरि -जन्म – मरण आदि के अवसर पर आने वाले रोगों का नाश करने वाले ईश्वर के गुण के लिए (‘ओं धन्वन्तरये स्वाहा’ इस मन्त्र से) बलिवैश्वदेव यज्ञ में आहुति देवे ।

उसी के आधार पर सत्यार्थ – प्रकाश में निम्न आहुतियों का महर्षि ने कथन किया है –

‘‘होम मन्त्र – ओम् अग्नेय स्वाहा । सोमाय स्वाहा । अग्नीषोमाभ्यां स्वाहा । विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा । धन्वन्तरये स्वाहा’’

(सत्यार्थ० चतुर्थ समु०)

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