वेदानधीत्य वेदौ वा वेदं वापि यथाक्रमम् । अविप्लुतब्रह्मचर्यो गृहस्थाश्रमं आवसेत् ।

ब्रह्मचर्य से चार, तीन, दो अथवा एक वेद को यथावत् पढ़ अखण्डित ब्रह्मचर्य का पालन करके गृहाश्रम को धारण करे ।

(सं० वि० विवाह सं०)

‘‘जब यथावत् ब्रह्मचर्य आचार्यनुकूल वत्र्तकर धर्म से चारों, तीन वा दो अथवा एक वेद को सांगोपांग पढ़के जिसका ब्रह्मचर्य खण्डित न हुआ हो वह पुरूष वा स्त्री गृहाश्रम में प्रवेश करे ।’’

(स० प्र० चतुर्थ समु०)

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