गुरू के समीप रहते हुए ब्रह्मचारी को ज्ञान, कर्म, उपासना रूप त्रिविध ज्ञान वाले वेदों के अध्ययन सम्बन्धी ब्रह्मचर्य व्रत का छत्तीस वर्ष पर्यन्त उससे आवे अर्थात् अठारह वर्ष पर्यन्त अथवा उन छत्तीस के चौथे भाग अर्थात् नौ वर्ष पर्यन्त अथवा जब तक विद्या पूरी न हो जाये तब तक पालन करना चाहिये ।
‘‘आठवें वर्ष से आगे छत्तीसवें वर्ष पर्यन्त अर्थात् वेद के सागोंपांग पढ़ने में बारह – बारह वर्ष मिल के छत्तीस और आठ मिल के चवालीस अथवा अठारह वर्षों का ब्रह्मचर्य और आठ पूर्व के मिल के छब्बीस वा नौ वर्ष तथा जब तक विद्या पूरी ग्रहण न कर लेवे तब तक ब्रह्मचर्य रक्खे ।’’
(स० प्र० तृतीय समु०)