वीक्ष्यान्धो नवतेः काणः षष्टेः श्वित्री शतस्य तु । पापरोगी सहस्रस्य दातुर्नाशयते फलम् । । ३.१

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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