विद्यादाता ब्राह्मण का कत्र्तव्य –
एक आख्यान प्रचलित है कि एक बार विद्या ब्राह्मणम् एत्य आह विद्या विद्वान् ब्राह्मण के पास आकर बोली – ते शेवधिः अस्मि, माम् रक्ष ‘‘मैं तेरा खजाना हूँ, तू मेरी रक्षा कर माम् असूयकाय मा दाः मुझे मेरी उपेक्षा, निन्दा या द्वेष करने वाले को मत प्रदान कर तथा वीर्यवत्तमया स्याम् इस प्रकार से ही मैं वीर्यवती – महत्त्वपूर्ण और शक्तिसम्पन्न बन सकूंगी ।’’