यम् एव तु शुचिं नियत ब्रह्मचारिणम् ‘‘जिसे तुम छल – कपट रहित शुद्ध श्रद्धाभाव से युक्त, जितेन्द्रिय और ब्रह्मचारी विद्यात् समझो तस्मै अप्रमादिने निधिपाय विप्राय मां बू्रहि उस आलस्यरहित और इस खजाने की रक्षा एवं वृद्धि में समर्थ विप्र वेदभक्त जिज्ञासु शिष्य को मुझे पढ़ाना ।’’