न तिष्ठति तु यः पूर्वां नोपास्ते यश्च पश्चिमाम् । स शूद्रवद्बहिष्कार्यः सर्वस्माद्द्विजकर्मणः ।

संध्योपासन न करने वाला शूद्रवत् –

यः जो मनुष्य पूर्वां न तिष्ठति च पश्चिमां न उपास्ते नित्य प्रातः और सांय संध्योपासन को नहीं करता सः शूद्रवत् उसको शूद्र के समान समझकर सर्वस्मात् द्विजकर्मणः बहिष्कार्यः समस्त द्विजकुल से अलग करके शूद्र कुल में रख देना चाहिए ।

(द० ल० प० पृ० २३९)

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