संध्योपासना का फल –
मनुष्य पूर्वासंध्या जपन् तिष्ठन् प्रातः कालीन संध्या में बैठकर जप करके नैशम् एनः व्यपोहति रात्रिकालीन मानसिक मलीनता या दोषों को दूर करता है तु पश्चिमां समासीनः और सांयकालीन संध्या करके दिवाकृतं मलं हन्ति दिन में संच्चित मानसिक मलीनता या दोषों को नष्ट करता है अभिप्राय यह है कि दोनों समय संध्या करने से पूर्व वेला में आये दोषों पर चिन्तन – मनन और पश्चात्ताप करके उन्हें आगे न करने के लिए संकल्प किया जाता है तथा गायत्री – जप से अपने संस्कारों को शुद्ध – पवित्र बनाया जा सकता है ।