त्रिराचामेदपः पूर्वं द्विः प्रमृज्यात्ततो मुखम् । खानि चैव स्पृशेदद्भिरात्मानं शिर एव च ।

(पूर्वं अपः त्रिः + आचामेत्) पहले जल का तीन बार आचमन करे (ततः) उसके बाद (मुखं द्विः प्रमृज्यात्) मुख को दो बार धोये (च) और (खानि एव) नाक, कान, नेत्र आदि इन्द्रियों को (आत्मानं च शिरः एव) हृदय और सिर को भी जल से (स्पृशेत्) स्पर्श करे ।

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