अङ्गुष्ठमूलस्य तले ब्राह्मं तीर्थं प्रचक्षते । कायं अङ्गुलिमूलेऽग्रे देवं पित्र्यं तयोरधः

३३., ३४. विप्रः द्विज नित्यकालम् प्रतिदिन आचमन करते समय ब्राह्मेण तीर्थेन ब्राह्मतीर्थ हाथ के अंगूठे के मूलभाग का स्थान, जिससे कलाई भाग की ओर से आचमन ग्रहण किया जाता है से वा अथवा काय – त्रै दशिकाभ्याम् कायतीर्थ – प्राजापत्य कनिष्ठा अंगुली के मूलभाग के पास का स्थान से या वैदशिक देवतीर्थ -उंगलियों के अग्रभाग का स्थान से उपस्पृशेत् आचमन करे, पिव्येण कदाचन न पितृतीर्थ अंगूठे तथा तर्जनी के मध्य का स्थान से कभी आचमन न करे ।

(अंगुष्ठमूलस्य तले) अंगूठे के मूलभाग के नीचे का स्थान ब्राह्मं तीर्थ – प्रचक्षते ब्राह्मतीर्थ अंगुलिमूले कालम् अंगुलियों के मूलभाग का स्थान कार्यतीर्थ अग्रे दैवम् अंगुलियों के अग्रभाग का स्थान दैवतीर्थ, और तयोः अधः पिव्यम् अंगुलियों और अंगूठे का मध्यवर्ती मूलभाग का स्थान पितृतीर्थ प्रचक्षते कहा जाता है ।

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