दूसरों से द्रोह आदि का निषेध
. मनुष्य आर्तः अपि स्वंय दुःखी होता हुआ भी अरूंतुदः न स्यात् किसी दूसरे को कष्ट न पहुंचावे न परद्रोहकर्मधीः न दूसरे के प्रति ईष्र्या या बुरा करने की भावना मन में लाये अस्य यया वाचा उद्विजते इस मनुष्य के जिस वचन से कोई दुःखित हो ताम् अलोक्यां न उदीरयेत् उस ऐसी लोक में अप्रशंसनीय वाणी को न बोले ।