(हायनैः) अधिक वर्षों के बीतने पलितैः श्वेत बाल के होने वित्तेन अधिक धन से बन्धुभिः बड़े कुटुम्ब के होने से न वृद्ध नहीं होता ऋषयः धर्म चक्रिरे किन्तु ऋषि – महात्माओं का यही नियम है कि नः यो अनूचानः स महान् जो हमारे बीच में विद्या विज्ञान में अधिक है, वही वृद्ध पुरूष कहाता है ।
(स० प्र० दशम समु०)
‘‘धर्म वेत्ता ऋषिजनों ने न वर्षों, न पके केशों वा झूलते हुए अंगों, न धन और न बन्धु -जनों से बडप्पन माना किन्तु यही धर्म निश्चय किया कि जो हम लोगों में वाद- विवाद में उत्तर देने वाला अर्थात् वक्ता हो, वह बड़ा है ।’’
(सं० वि० वेदारम्भ सं०)