अज्ञो भवति वै बालः पिता भवति मन्त्रदः । अज्ञं हि बालं इत्याहुः पितेत्येव तु मन्त्रदम् ।

अज्ञः वै बालः भवति चाहे सौ वर्ष का भी हो परन्तु जो विद्या विज्ञान से रहित है वह बालक और मन्त्रदः पिता भवति जो विद्या विज्ञान का दाता है उस बालक को भी वृद्ध पिता मानना चाहिए हि क्यों कि सब शास्त्र, आप्त विद्वान् अज्ञं बालम् इति अज्ञानी को बालक मन्त्रदं तु पिता इत्येव आहुः और ज्ञानी को पिता कहते हैं ।

(स० प्र० दशम समु०)

‘‘अज्ञ अर्थात् जो कुछ नहीं पढ़ा वह निश्चय करके बालक होता है, और जो मन्त्रद अर्थात् दूसरे को विचार देने वाला विद्या पढ़ा विद्याविचार में निपुण है वह पिता – स्थानीय होता है, क्यों कि जिस कारण सत्पुरूषों ने अज्ञजन को बालक कहा और मन्त्रद को पिता ही कहा है इससे प्रथम ब्रह्मचर्याश्रम सम्पन्न होकर ज्ञानवान् – विद्यावान् अवश्य होना चाहिए ।’’

(सं० वि० वेदा० सं०)

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