य आवृणोत्यवितथं ब्रह्मणा श्रवणावुभौ । स माता स पिता ज्ञेयस्तं न द्रुह्येत्कदा चन

अध्यापक या आचार्य की महत्ता:

यः ब्रह्मणा जो गुरू या आचार्य वेदज्ञान के द्वारा उभौ श्रवणौ अवितथम् आवृणोति दोनों कानों को भली भांति परिपूर्ण करता है सुनाता – पढ़ाता है सः माता सः पिता ज्ञेयः से माता, पिता समझना चाहिए तं कदाचन न द्रुह्येत् और उससे कभी द्रोह ईष्र्या -अपमान न करे ।

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