पिता – गुरू का लक्षण
यः यथाविधि जो विधि – अनुसार निषेकादीनि कर्माणि करोति गर्भाधान आदि संस्कारों को करता है च तथा अन्नेन संभावयति अन्न आदि भोज्य पदार्थों द्वारा बालक का पालन – पोषण करता है स विप्रः वह विद्वान् द्विज गुरूः उच्यते गुरू कहलाता है ।
‘‘जो वीर्यदान से ले के भोजनादि कराके पालन करता है, इससे पिता को ‘गुरू’ कहते हैं ।’’
(द० ल० आ० पृ० २७६)
‘‘निषेक – अर्थात् ऋतु – प्रदान यह प्रथम संस्कार है । पिता निषेक करता है, इसलिए पिता ही मुख्य गुरू है ।’’
(पू० प्र० पृ० ७७)