उपाध्यायान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता । सहस्रं तु पितॄन्माता गौरवेणातिरिच्यते

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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