सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि । समं पश्यन्नात्मयाजी स्वाराज्यं अधिगच्छति

सब चराचर पदार्थों एवं प्राणियों में परमात्मा की व्यापकता को और परमात्मा में सब पदार्थों एवं प्राणियों के आश्रय को समानभाव से देखता हुआ अर्थात् सर्वत्र परमात्मा की स्थिति का अनुभव कर सर्वदा उसी का ध्यान करता हुआ परमात्मा का उपासक मनुष्य परमात्मसुख अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर लेता है ।

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