शारीरिक अधर्म तीन है—चोरी हिंसा अर्थात् सब प्रकार के क्रूर कर्म *(परदारोपसेवा), रंडीबाजी या व्यभिचारादि कर्म करना । (उपदेश मञ्जरी 34)
* (अविधानतः) शास्त्रविरुद्ध रूप में करना (शास्त्र में कुछ हिंसाएँ विहित है, जैसे- आपत्काल में आततायी की हिंसा, हिंस्रपशु की हिंसा, (युद्ध में शत्रुओं की हिंसा आदि) ।