मानसं मनसैवायं उपभुङ्क्ते शुभाशुभम् । वाचा वाचा कृतं कर्म कायेनैव च कायिकम्

यह जीव मन से जिस कर्म को करता है उसको मन वाणी से किये को वाणी और शरीर से किये को शरीर से सुख-दुःख को भोगता है । (स. प्र. नवम समु.)

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