पारुष्यं अनृतं चैव पैशुन्यं चापि सर्वशः । असंबद्धप्रलापश्च वाङ्मयं स्याच्चतुर्विधम्

वाचिक अधर्म चार है— पारुष्य अर्थात् कठोरभाषण । सब समय, सब ठौर मृदु भाषण करना यह मनुष्यों को उचित है । किसी अन्धे मनुष्य को ’ओ अंधे’ ऐसा कहकर पुकारना निस्सन्देह सत्य है, परन्तु कठोर भाषण होने के कारण अधर्म है । अनृतभाषण अर्थात् झूठ बोलना, पैशुन्य अर्थात् चुगली करना, असम्बद्धप्रलाप अर्थात् जान बूझकर (लांछन या बुराई बनाकर) बात को उड़ाना । (उपदेशमञ्जरी 34)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *