जो वेदों का अभ्यास, धर्मानुष्ठान, ज्ञान की वृद्धि पवित्रता की इच्छा, इन्द्रियों का निग्रह(धर्म क्रिया च आत्मचिन्ता) धर्मक्रिया और आत्मा का चिन्तन होता है यही सत्व गुण का लक्षण है । (स. प्र. नवम समु.)
जो वेदों का अभ्यास, धर्मानुष्ठान, ज्ञान की वृद्धि पवित्रता की इच्छा, इन्द्रियों का निग्रह(धर्म क्रिया च आत्मचिन्ता) धर्मक्रिया और आत्मा का चिन्तन होता है यही सत्व गुण का लक्षण है । (स. प्र. नवम समु.)