आरम्भरुचिताधैर्यं असत्कार्यपरिग्रहः । विषयोपसेवा चाजस्रं राजसं गुणलक्षणम् ।

जब रजोगुण का उदय, सत्वगुण और तमोगुण का अन्तर्भाव होता है तब धैर्यत्याग, असत् कर्मों का ग्रहण, निरन्तर विषयों की सेवा में प्रीति होती है तभी समझना कि रजोगुण प्रधानता से मुझ में वर्त रहा है । (स. प्र. नवम समु.)

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