एतं एके वदन्त्यग्निं मनुं अन्ये प्रजापतिम् । इन्द्रं एके परे प्राणं अपरे ब्रह्म शाश्वतम्

इस परमात्मा (12/122) को कोई ’अग्नि’, कोई प्रजापति परमात्मा को ’मनु’ कोई ’इन्द्र’, कोई ’प्राण’, दूसरे कोई शाश्वत ’ब्रह्म’ कहते हैं ।

’स्वप्रकाश होने से अग्नि’, विज्ञानस्वरूप होने से ’मनु’  , सबका पालन करने और परमैश्वर्यवान होने से इन्द्र, सबका जीवनभूत होने से प्राण और निरन्तर व्यापक होने से परमेश्वर का नाम ब्रह्म है । (स.प्र. प्रथम समु.)

महर्षि द्वारा प्रमाण रूप से अन्यत्र उद्धत- (1) प. वि. 13, (2) द. ल. भ्रा. नि. 196, (3) उपदेशमञ्जरी 52, (4) द. शा. 53 (5) द. ल. वेदांक 126 ।

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